Friday, 4 May 2018

independent

poetry- ek khoj

मैं तो बस तुम्हें खोज रहा हूँ
तुम हो के उसे खोज रहे होl

वो भी जानता है वो किसे खोज रहा है
प्रत्येक उत्तर से परिपूर्ण है हृदयl

लेकिन जिस्म पर केवल प्रश्न टंगे हैं
मिट्टी की देह में कहाँ छुपी बैठी है आत्माl

उस आत्मा में कहाँ विद्यमान है परमात्मा
और यहाँ कौन है जो उसे खोज रहा है?



No comments:

Post a Comment