Friday, 4 May 2018

independent poetry

नज़्म- कोरे कागज़ पर  

रात के वक़्त रखा था कोरे कागज़ पर
ख़यालों का एक बीज,
खिड़की के करीब रख दिया उसको
वहीं रखी है तुम्हारी तस्वीरl

रात में बारिश ने बूंदें गिराई
सुबह खिड़की से धूप आई
ख़यालों के बीज में गज़ल छुपी थी
कोरे कागज़ पर गज़ल उग आईl

तुम्हें गज़ल भेज रहा हूँ
उसको पढ़कर मुझे बताना तुम,
गज़ल कैसी है? तुम कैसी हो?


1 comment:

  1. "गज़ल कैसी है? तुम कैसी हो?"

    So tender and adorable. Brilliant.

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